हवलदार उदयराज सिंह का हुआ निधन, वीरचक्र से थे सम्मानित
वीरचक्र लाकर जिले का बढ़ाया था मान, बांग्लादेश युद्ध में दुश्मन के
छुड़ाए थे छक्के, ग्यारह सैनिकों को जीवित किया था गिरफ्तार
उन्नाव। बात अगर हिम्मत, हौंसले और राष्ट्रप्रेम की चले और
बैसवारा के रामसिंह खेड़ा निवासी सेवानिवृत्त हवलदार उदयराज का नाम चर्चा
में न आए, यह नामुमकिन है। यह हो भी क्यों न, आखिर बांग्लादेश की
स्वतंत्रता के युद्ध में उन्होंने कारनामा ही कुछ ऐसा किया था कि क्षेत्र व जिले का गौरव बनकर उस सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया था जिसमें सिर्फ हिम्मतवर ही शामिल हो सकते हैं। जी हां वीरचक्र सम्मान से हवलदार उदयराज सिंह को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित
किया गया था।
करीब 78 वर्ष की उम्र पार कर चुके वीरचक्र प्राप्त हवलदार अदयराज सिंह का आज सांय 2:30 बजे कानपुर के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे काफी समय से हृदय रोग समेत अन्य कई बीमारियों से ग्रसित थे। हालांकि तमाम बीमारियों के बावजूद लेकिन न उनकी याददाश्त कमजोर हुई थी और न ही उनकी आवाज का जोश। हां सामाजिक
भागीदारी अवश्य पहले की अपेक्षा इधर करीब तीन वर्ष में कुछ कम हुई थी। सेवानिवृत्त होकर आने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ ही
पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों की मदद के लिए श्री सिंह ने अपने कुछ
साथियों के साथ मिलकर जिस संगठन की नींव डाली थी वह अभी भी सेना जैसे ही
अनुशासन में सेवाकार्य कर रहा है। स्व सिंह के करीबी रहे सेवानिवृत्त कैप्टन योगेंद्र बहादुर सिंह के अनुसार वे बताया करते थे कि वीरचक्र जैसा
सम्मान उन्हें कैसे मिल गया उन्हें आज तक नहीं मालूम है वे तो सेना में
रहकर सिर्फ पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन मात्र कर रहे थे। वर्ष
1971 में हुए बांग्लादेश युद्ध में श्री सिंह यशपुरा पल्टन में हवलदार पद
पर थे। अवकाश लेकर घर आए हुए श्री सिंह को जब सेना की ओर से भेजा गया
टेलीग्राम मिला तो वे अवकाश समाप्त होने के दस दिन पूर्व ही ड़यूटी के
लिए निकल गए। मोर्चे के लिए कूच कर चुकी अपनी पलटन में वे अगरतला में
शामिल हुए। तीन दिन तक दुश्मन की ओर बढ़ते समय कई दुश्वारियों और खतरों
को पार कर जब वे फीचूगंज पंहुचे तो यहां पर नदी को रेलवे पुल के रास्ते
पार करना था। नदी के दूसरे छोर पर मौजूद दुश्मनो से मोर्चा लेते हुए श्री
सिंह के नेतृत्व में ही पहली सेक्सन ने पुल पार किया था। दोनो ओर से हो
रही भीषण गोलीबारी के बीच रेंगते हुए सेना की इसी टुकड़ी ने पुलपार कर
दुश्मनो पर जोरदार हमला किया था। इस टुकड़ी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि
उन्होंने दुश्मन की लाशे बिछाते हुए उन्हें भागने के लिए विवश कर दिया था।
इस टुकड़ी ने 11 पाकिस्तानी सैनिकों को जीवित हिरासत में भी लिया था। इस
टुकड़ी को मिली सफलता के बाद अन्य टुकडि़यों के आने का क्रम जारी रहा और
बाद में सेना लगातार आगे बढ़ती गई। बाद में हिंदुस्तान की सेना ने जीत
दर्ज कराई थी। उनके पराक्रम और बुद्धिमत्ता के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा उन्हें वीर चक्र सम्मान से सम्मानित किया था। कैप्टन वाईबी सिंह के अनुसार वर्ष 1984 में संवानिवृत्त होने के बाद भी श्री सिंह अपनी
पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते रहे। इस
दौरान उनका बड़ा पुत्र अरुण सिंह एक दुर्घटना में घायल होने के बाद सेना
से आउट कर दिया गया तथा छोटे बेटे केशन कुमार की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी।
हालांकि उन्होंने पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को मदद करने के इरादे
से इसी दारम्यान अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर एक संगठन की नींव डाली थी जो आज भी सेना की तरह ही अनुशासित रहकर संचालित हो रहा है।
वृद्धावस्था और विभिन्न बीमारियों के कारण शारीरिक रूप से कमजोर होते
जा रहे इस जांबांज की आवाज और हिम्मत अंतिम क्षण तक कतई कमजोर नहीं हुई थी। अब वीर चक्र विजेता इस जांबाज की यादें शेष हैं जो बैसवारा के इतिहास में दर्ज रहकर आगे भी जीवित रहेंगी।
वीरचक्र हवलदार उदयराज सिंह का जीवन परिचय
बीघापुर तहसील क्षेत्र के रामसिंहखेड़ा निवासी श्रीमती राधा सिंह और
जालिम सिंह के पुत्र वीरचक्र प्रप्त हवलदार उदयराज सिंह का जन्म वर्ष
1942 में हुआ था। महज अलिफ तक की शिाक्ष प्राप्त करने वाले उदयराज सिंह
के माता और पिता दोनो का ही निघन छह माह के अंतराल में तब हो गया था जब
वे महज आठ वर्ष के थे। बाबा, दादी व चाचा के संरक्षण में पले उदयराज सिंह उन्नाव में भर्ती पा्ररंभ होने की जानकारी मिलने के बाद शामिल होने गए थे। आसान प्रक्रिया होने और शारीरिक रूप से फिट होने
के कारण उन्हें सेना में शामिल कर लिया गया था। माता-पिता के निधन के बाद
छोटे भाई उदय प्रताप सिंह और उदयभान सिंह की भी जिम्मेदारी उन्हीं पर
थी। वर्तमान समय मे उनके परिवार में पत्नी चंदा सिंह के अलावा बेटे केशन कुमार और
छोटे बेटे की पत्नी व उसके दो बेटे, दो बेटियों का भरापूरा परिवार है।